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मनोवैज्ञानियो के अनुसार

मनोवैज्ञानियो के अनुसार

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लेखक डा. बलविन्दर सिंह वालिया (पट्टटी वाले) अनुसार : जैसे जीवित रहने के लिये इन्सान को खुराक की ज़रूरत है, पयास बुझाने के लिए पानी की उसी प्रकार इन्सान (स्त्री-पुरुष) को मन की भावना को सन्तुष्ट करने के लिये जो तमना पैदा होती है उसको पूरा करने के लिये स भोग करना पड़ता है। |

सैकस क्या है ? यह हर इन्सान के मन में विचार उत्पन्न होता है । इसके बारे में कई समाज शास्त्रियों, काम विज्ञानी तथा मनोविज्ञानियों ने सैकस के बारे में लेख लिखे हैं, सभी का सोचना एक जैसा ही है|

संसार का सबसे पुराना ग्रंथ ऋग्वेद है। जिस में प्रेम-भगति , मित्रता हमारे तीन लगाव बढ़ाते हैं तथा किसी न किसी खूप में काम के लक्षण नज़र आते हैं। प्रसिद्ध काम शास्त्री च्आचार्य वास्तवानऊ का कहना है कि मन तथा आत्मा के अन्दर-पन इन्द्रियों के अपने-अपने अंगों के अनूकूल प्रवृर्शि है, वही सैकस है। सभी को भूख तथा पयास की जरुरत जन्म से ही होती है। बच्चों को काम वासना किसी न किसी रूप में होती है । फर्क केवल इतना है कि बचपन तथा छोटी आयु में उत्तेजना नहीं होती, जितनी जवानी की आयु में होती है। च्व्सगमंड फाईडऊ मनोवैज्ञानिक ने तो यहां तक कहा है कि बच्चा अपनी मां का दूध भी अपनी भूख मिटाने के लिए करता है तथा उसके अन्दर छुपी हुई सैकस भावना भी पूरी हो जाती है । इस लेखक के अनुसार बच्चे का अपना अंगूठा चूसना भी सैकस पूर्ति है।

अधिकांश मनोवैज्ञानिक तथा नाम शास्त्री इस लेखक के साथ सहमत हैं। यह तो एक मानने योग्य बात हैं और सत्य भी हैं। सैकस संसार का सब से बड़ा मानसिक और शरीरिक तथा त्रिपत का साधन है। दूसरे जीव जन्तुओं, पशुओं की तरह मनुष्य भी काम त्रिपत तथा सुख की पप्राप्ती के लिये ज्यादा आनन्द प्रपात करने की इच्छा रखता है। अधिक से अधिक खूबसूरत वस्तु पाने की इच्छा रखता है। अगर यह भावना मन अन्दर खत्म हो जाये तो सन्तुष्टि मर जायेगी। संसार चल नहीं सकेगा। सृष्टि का निर्माण ही सैकस है ।

जो नर-मादा के मिलने से उत्पन्न होता है तथा लगातार होता जा रहा है और सृष्टि चल रही है।

पशु पक्षी, कीट-पतंगे तथा मनुष्य जगत का आधार इसी पर है कयोंकि जीवन रक्षा के लिये वंश (औलाद) बढ़ाने की इच्छा हर जीवनधारी के अन्दर है जो मनुष्य के अन्दर भी है। सैकस भी वंश बढ़ाने का कारण है। नर-मादा यौन सबन्ध हैं तथा भूख-यास सभोग क्रिया द्वारा बुझाने का आनद पूर्ति का साधन है।

सैकस को समझे बिना हर मनुष्य का ज्ञान अधूरा है। यह शरीर तथा मन का वैज्ञानिक अंग है। इसको बिना समझे तथा बिना जाने सैकस के ज्ञान के बिना जीवन बिल्कुल अधूरा है।

पुरुष प्रधान समाज में सभोग के बारे में नज़रिया मर्द को स भोग संचालक रख कर ही बनाया गया है। इसी कारण काम वैज्ञानियों का शीग्रि पतन बारे नज़रिया मु य तौर पर मर्द की कमजोरी को ही मूर्तिमान करता है। इस नज़रिये का अधियन करते हुए एसा प्रतीत होता है कि जैसे सभोग क्रिया में औरत केवल प्रयोग की जाने वाली वस्तु है। उसको जितना अधिक प्रयोग किया जाये उसक अधिक आनन्द आता है तथा उतनी ही उसको यौन सन्तुष्टि होती है। मेरी समझ अनुसार स भोग तथा औरत की यौन समर्था सन्तुष्टि बारे यह नज़रिया ठीक नहीं है।

अलग-अलग काम वैज्ञानियों ने अपने-अपने अध्ययन तथा अनुभव के आधार पर परिणाम निकाले हैं। सभोग क्रिया कयोंकि आदमी का आधेयात्मिक मामला है, इसलिये जो आदमी जितनी गहराई तक पहुंचा उसको वही सत्य दिखाई दिया।

कुछ वैज्ञानियों ने शीघ्र पतन को केवल एक मानसिक कारण तथा कुछ इसको धातु हीनता तथा वीर्य के पतलेपन से निकला लक्षण मानते हैं। प्रचलित नज़रिया स भोग में समय न लग सकना है। इस अनुसार मर्द अगर औरत की योनी में लिंग प्रवेश करने के बाद डेढू मिनट तक अपना वीर्य रोके मैथुन क्रिया नहीं चला सकता तो फिर शीघ्र पतन का रोगी है। काम विज्ञान के नज़रिये से ही दोनों क्रियाएँ अधूरी हैं।

शीघ्र -पतन को समझने से पहले स भोग क्रिया की ठीक जानकारी लेना बहुत जरूरी है। सभोग क्रिया कया है ? सभोग क्रिया औरत तथा मर्द के दरमिआन एक दूसरे की यौन तृत्तपत कराने का माधयम है। काम विज्ञान अनुसार वीर्य निकलने तथा स भोग के शिखर आनन्द में समय का कोई महतव नहीं है। महतव केवल इस बात का है कि सभोग क्रिया में एक दूसरे की यौन त्रिपत हुई है या नहीं। काम विज्ञान में महतव केवल परस्पर यौन सन्तुष्टि का है वह चाहे एक मिनट में हासिल होती है, चाहे एकण्टे में। अब सवाल पैदा होता है कि काम विज्ञान अनुसार शीघ्र पतन किसको कहा जाए? जैसे पहले कहा गया है कि संभोग क्रिया एक दूसरे की परस्पर यौन सन्तुष्टि कराने का माधयम है । इस तरह यह बात साफ हो जाती है कि स भोग क्रिया में एक दूसरे को शिखर सुख तक पहुंचाये बिना बीच में छोड़ देना शीघ्र पतन है।

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि यह केवल मर्दों की ही समस्या नहीं है, यह औरत के साथ भी होता है। प्रबल कामवेग चमतियां तथा व भोग कला में अनजान औरतें जब काम कला में मस्त मर्द के साथ स भोग रचाती हैं तो कई बार मैथुन क्रिया से पहले ही शिखर छोह बैठती हैं । पर औरत के लिये शीघ्र पतन समस्या इस कारण नहीं बनता कयोंकि उसके यौन अंग तथा सभोग क्रिया अन्दर की तरफ होती है। इस कारण पहले छोह करके भी सभोग क्रिया को जारी रखने में उसको कोई कठिनाई महसूस नहीं होती। जब कि मर्द का लिंग एक बार वीर्य निकल जाने पर ढीला पड़ना शुरू हो जाता है तथा ढीले पड़े लिंग से स भोग क्रिया जारी रख सकना उसके लिये मुश्किल हो जाता है।

सभोग क्रिया कयोंकि मर्द ही करता है इसलिये औरत को शिखर छोह तक ले जाकर सन्तुष्ट करना भी मरद के जिमे होता है। इस कारण मर्द के मन में यह इचछा बनी रहती है कि वह अपने वीर्य को अधिक से अधिक समय तक रोक कर खुद भी स भोग का सुख माने तथा औरत को भी शिखर सुख का आनन्द दे। पूर्ण आनन्द के इन पलों को अधिक से अधिक ल बा करना हर मर्द की इच्छा होती है । इस इच्छा की पूर्ति के लिये वह कई बार नशा भी करने लग जाता है।

औरत के काम अंगों की बनतर कुछ ऐसी होती है कि मामूली स्पर्श या थोड़ी रगड़ से ही इसकी उत्तेजना मर्द के मुकाबले कम हो जाती है। औरत को सभोग परम आनन्द तक ले जाने के लिए उसके दूसरे कामुक अंगों को भी सहलाना पड़ता है।

बहुत सारे मर्द औरत को उतेजित किये बिना सीधा ही सभोग करना शुरू कर देते हैं। सभोग में वे औरत को संतुषट नहीं कर सकते। इस तरीके से किये गये सभोग में औरत को जब सभोग सुख की अनुभूति होने लगती है तो मर्द अपना काम खत्म कर चुका होता है। शिखर सुख तक पहुंचने के लिये उसको अभी और सभोग की जरूरत होती है। अपनी इस ज़रूरत को बताने के लिये वह ज़ुबान से चाहे न बोले पर मर्द की वीर्य के निकलने के साथ ही वह सभोग क्रिया में तेज़ी से हिस्सा लेकर अपना शिखर सुख हासिल करने का यत्न करती है। वीर्य के निकल जाने से लिंग ढीला पड़ जाता है। बीच में अटकी औरत की मन की इच्छायें मन में ही रहती हैं। मर्द से सहयोग न मिलता देखकर वह भी अपने यत्न बीच में ही छोड़ देती है। यह बात सच है जिस स भोग में औरत असंतुस्ट रह जाती है, उसमें संतुश्टी मर्द को भी नहीं मिलती। सभोग समय से पहले खल्लास हो जाने वाला मर्द औरत की अतूर्पिछित को समझ कर आत्म ज्ञान से भर जाता है।

नये विवाहित जोड़ों में तो पहले-पहले औरत मर्द खलल्‍लास हो जाने को बहुत गभीरता से नहीं लेते। पर समय गुज़र जाने के - साथ-साथ जब हर बार मर्द औरत को बीच में ही अधूरी छोड़ देता है तो उसका धरवास तीखी आलोचना में बदल जाता है। उसको महसूस होता है कि उसका मर्द उसे केवल अपने स्वाद के लिये ही प्रयोग करता है। बार-बार सभोग सुख से वंचित रह जाने के कारण वह या तो सभोग से बे-मुख हो जाती है या फिर इस ज़रूरत कौ पूर्ति के हित में बाहरी सबन्ध बनाती है।

हमारे समाज में सभोग आनन्द में बीच में अटक जाने वाली औरतें ज़्यादातर कामशीलता का शिकार अलग-अलग मानसिक रोगों का शिकार हो जाती हैं। बहुत सारे मर्दों कौ सभोग सुख तथा औरत के बारे में सोचनी यह होती है कि औरत का काम उसको स्वाद देना तथा उससे वह स्वाद लेना है । औरत के यौन अंग उनके लिये मात्र वीर्य डाल देने वाला बर्तन होता है । ऐसे मर्द कभी शीघ्र पतन की शिकायत नहीं करते कयोंकि वे इस क्रिया से अनजान होते हैं।

शीग्र पतन की समस्या पढ़े लिखे तथा संवेदनशील और संभोग आनन्द को जानने वाले लोग ज्यादा महसूस करते हैं। संभोग में औरत को बराबर का आनन्द देकर त्रिपत करना उनके लिये सभोग सफलता होती है। शीग्र पतन के मानसिक तथा शारीरिक दोनों कारण ही होते हैं। शारीरिक कारणों में बदहज़मी, कर्ज, प्रोस्टेट गलैंड के नुकस, मसाने की गर्मी , सुज्ञाक, वीर्य का पतलापन, ज्यादा सभोग करने से जलन, इन्द्रियों की कमज़ोरी से शीघ्र पतन होने लग जाता है।

इसके मानसिक कारणों में प्रबल काम उतेजना, सभोग समय बाहरी डर, संकोच, शर्म, तनाव, लिंग के ढीला पड़ जाने का डर, मन को अच्छी न लगने वाली औरत से स भोग करते समय शीघ्र पतन हो जाता है।

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